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तेरे होते हुए महफ़िल में अकेला हो जाऊँ / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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तेरे होते हुए महफ़िल में अकेला हो जाऊं
क्या क़ियामत है कि टूटा हुआ रिश्ता हो जाऊं
काश ये दिन भी दिखाये मिरी तक़दीर मुझे
मैं तिरी चाह बनूँ तेरी तमन्ना हो जाऊं
आते जाते मुझे रौंदा करें बस्ती वाले
सोचता हूँ कि तिरे गांव का रस्ता हो जाऊं
तू खरीदे तो मैं बेमोल तिरे हाथ बिकूँ
मैं तिरे प्यार में मिट्टी से भी सस्ता हो जाऊं
मोजिज़ा ये भी ज़माने को दिखाऊं इक दिन
मिट के हर ज़र्रा-ए-खकी से हुवैदा हो जाऊं
मैं तो बीमारे-महब्बत हूँ अज़ल से 'रहबर'
इक नज़र देख ले वो मुझको तो अच्छा हो जाऊं