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तेरो रंग बदल्यूँ च है रे जमाना! / गढ़वाली
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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तेरो रंग बदल्यूँ च है रे जमाना!
दुनिया का देख ढंग, चड्यूँ च कच्चो रंग।
भेद भौ कुछ नी च, सब एक समाना!
छै रुप्या को कोट सिलैले तब चलदो बाँगो,
जेब मा वेका धेला नी च चुफ्लो वे को नाँगो!
कली होक्का साँदी रख्या, बीड़ी पेन्दा ज्यादा,
कोणा पर बीड़ी सुलगै, रजै फुंके आदा!
नौना को भैंसो ब्यायूँ, बुड्या लग्यूँ च सास,
ब्वारी करदी सैर फैर, सासू काटदी घास!
सासू कर्दी कूटणी पीसणी ब्वारी ह्वैगे सयाणी,
नौनों मू चा को गिलास, बुड्या मू पंज्वाणी।
जोंखी मूंडी फुंडू धोली, चिफ्ली करी दाड़ी,
घर की जनानीक धोती नी, रंडीक लौंदा साड़ी!
हात पर बीड़ि लीले, गिच्चा पर पान,
बुड्या बुड्योंन जोंखी मूंडी, हम भी होन्दा ज्वान!
शब्दार्थ
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