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तेलू ठकुराइन की अचकन / कर्मानंद आर्य

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मगर वह बिलकुल नंगी थी
पीठ पर चमक रही थी सफ़ेद बर्फ
दुःख की छातियाँ नतग्रीव थीं
कोई समझ नहीं पा रहा था
उसे नंगा करने वाले कौन लोग थे
किन-किन लोगों ने उसे ठगा था
किस-किस की जीभ का लार घुटनों तक आया था
किस-किस ने देखा था उसका लिजलिजापन
उसे याद नहीं रहा

वह विस्थापन से दुखी नहीं थी
उसी देश से आयीं थीं बहुत सारी लड़कियां
दुःख आया था उसके आने के बाद
उसके बड़े होने पर
जब वह शारीरिक रूप से दिखाई देने लगी थी
जब उसे नोटिस किया गया था

वह लड़ाका थी
कई बार जीत-जीत हार गई थी वह
ऐसा नहीं कि हारने के बाद उसे मिलता था निरा सुख
या निरा दुःख उसे जिन्दा रखता था

बिल्कुल स्त्री सुलभ नहीं थीं उसकी लीलाएं
उसका भी मन था देखे अफलातून की फ़िल्में
ईराक और रूस के संबंधों पर बहस करे
ठकुरसुहाती तो उसे बिलकुल नहीं पसंद था

वह जानती थी उसका भोगा उसका भाग्य नहीं
जो नहीं भोग था उसे पछतावा नहीं

उसे पता था उसकी माँ नृत्य करती थी
नाचते-नाचते मर गई थी उसकी नानी
उसे नाचना पसंद नहीं था
लेकिन अचानक उसे घुंघरू पहनते देखा गया था

वह आम लड़कियों से अलग होना चाहती थी
उसकी जुबान पर थीं बहस-तलब चीजें
दलित-स्त्री-आदिवासी जैसे पद
उसे आकर्षित करते थे

लेकिन सुना है उसे मार दिया गया
दबा दी गई उसकी बोलती आवाज
किसी ने बताया वह कामरेड स्त्री थी
अंतिम बार उसे देखा गया था
तेलू ठकुराईन की अचकन पहने