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तैयारी / विजय गौड़
Kavita Kosh से
बच्चे किलक रहे हैं लगातार
दिन दोपहरी का सूरज
चढ़ रहा है आकाश में
बूढ़ी स्त्रियाँ
बहू और बेटियों के बच्चों की
मालिश कर रही है,
तेल सने खुरदरे हाथों से
नवजात शिशुओं के
मुलायम-मुलायम बदन रगड़ रही है,
रगड़ रही हैं
बच्चों के चेहरे
छाती
हाथ
जांघ
और सुप्त पड़े अंग
बच्चे ओर जोर से चीख रहे हैं।