तैश में जो वो आ गया होगा
ख़ुद का नुकसान ही किया होगा
झूठ के पांव क्यों न ठिठकेंगे
देखकर सच को वो डरा होगा
वो भविष्य और अतीत के हाथों
जाने क्यों, कैसे, कब बिका होगा
सलवटें कह रही हैं चादर की
रात बेचैन वो रहा होगा
आसमाँ टूट कर गिरा जिस पर
वो तो तक़दीर से बचा होगा
सच तो अब इक गुनाह ठहरा है
इससे बढ़कर बुरा भी क्या होगा
है वो इन्साफ की अगर ‘देवी’
फिर तो इन्साफ ही किया होगा