भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तै है / मधु आचार्य 'आशावादी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तै है
अेक दिन थूं जावैला
म्हैं ई जावूंला
फेरूं
क्यूं घबरावै
पाप नै क्यूं बधावै
दुनिया-भरा रो समान
कांधे अर माथै पर
क्यूं उठावै
कीं हळको रै
नीं थनै भार
नीं बापड़ी मौत नै मार
जिंदगाणी रो सफर भी
इण सूं रैवै सौरो ।