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तोंही चाँद, तोंही तेॅ सूरज / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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तोंही चाँद, तोंही तेॅ सूरज
तोरोॅ हँसी ई, तारा गजगज।

रति में, गति में, चित्तवृत्ति में
तोरे छवि के फेरा-फेरी,
जे भी नर-सुर भू पर; नभ पर
सब पर तोरोॅ घेरा-घेरी;
पाप-पुण्य के सीमा तोडी
तोहें श्री-सुख जीवन केरोॅ
जहाँ-जहाँपर तोरोॅ छाया
वहाँ-वहाँ प्रेमोॅ के जोरोॅ।
तोरोॅ याद तेॅ सब्भे लेॅ छै
रेगिस्तान में गंगा-सतलज।

तोरे सें जग हरित-भरित छै
तोरैं सें पीतल तक कंचन,
सात सुरोॅ में बदली जाय छै
बेसुर के ई झनझन-झनझन,
तोरे देहोॅ सें फूलोॅ केॅ
गंध मिलै छै, रूप मिलै छै,
पूस-माघ के शितलहरी में
उसुम-उसुम रं धूप मिलै छै;
केसर तोरोॅ सेज-बिछौना
साँस तोरोॅ छेकै ई मलयज।