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तोड़हीं राज किशोर धनुष प्रण को / रसूल
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तोड़हीं राज किशोर धनुष प्रण को
कोसिला नरेश जब धनुष को उठाई लियो,
मन में विचार किन्ह चार बातों का ।
तोड़ूं तो कैसे तोड़ूं, शंकर चाप त्रिपुरारी का ।
तोड़ूं तो कुल का कलंक हो,
नहीं तोड़ूं तो जनक प्राण रहे कइसे ।
तोड़ूं तो लोग कहें लोभ किन्ह नारी का ।
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जनक जी के आंगन में खम्भ गाड़े कंचन का,
चारु कोन पर नग जड़ दीन्ह दिए हैं ।
सोने की अंगूठी राम सांवरो नगीना है ।