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तोता और मैना / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल

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मुश्किल है रहना
बाहर की दुनिया में उड़ना
आकाश में सुरक्षित
बहेलियों से

आ जाओ तुम भी
देखो तो
सोने का पिंजरा यह कितना बड़ा है
भरा है
षटरस फलों से
अच्छा किया छोड़ दिया
लोहे का पिंजरा वह छोटा था
चक्कर काटने की भी जगह
नहीं थी तुम्हारे पिंजरे में
यहाँ मैं चाहूँ तो तोल सकता हूँ
फैला सकता हूँ अपने पंखों को

आओ तुम भी फैलाओ पंखों को
आजाद होकर
सोने का पिंजरा यह
काफी बड़ा है सुविधा-सम्पन्न भी

मैना स्तब्ध हुई चकित भी कि—
मुक्ति स्वप्न का साझीदार तोता यह
कैसा है कि बेच दिया अपने भीतर के
पंछी को
भूला दिया उड़ना मुक्त आकाश में
पाकर सुरक्षित पराधीनता

मैना बोली
पिंजरा तो पिंजरा है
लोहे का हो या सोने का
छोटा हो या बड़ा
सुख चाहे जितना हो

मुक्त आकाश में अपने ही पंखों से
विचरण की आजादी
आजादी आत्मनिर्भर होने की
आत्म रक्षा की
अनुपम इस आजादी का सुख ही पंछी का
सच्चा सुख है –कहा मैना ने तोते से
उड़ चली मैना तोते को छोड़कर सोने के पिंजरे में

मैना अब मुक्त है
उड़कर जा सकती है कहीं भी
गा सकती है मुक्त कंठ
कहते हैं कि
तब से तोता
टें टें करता
टेसुए बहाता है
और मैना गाली बकती है।