भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तोता हरा-हरा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
बच्चों ने डाली पर देखा
तोता हरा-हरा।
पत्तों के गालों पर उसने,
चुंटी काटी कई-कई बार।
पत्तों का भी उस तोते पर,
उमड़ रहा था भारी प्यार।
बहुत भला सुंदर तोता वह,
था निखरा-निखरा।
पत्तों से मुंह जोरी करके,
तोते ने फिर भरी उड़ान।
वहीं पास के एक पेड़ पर,
अमरूदों के काटे कान।
बेरी के तरुवर पर जाकर,
एक बेर कुतरा।
कैद किए बच्चों ने करतब,
अपने मोबाइल में बंद।
तोते की मस्ती चुस्ती का,
लिया अलौकिक-सा आनंद।
फुर्र हुआ तोता, पेड़ों पर,
सन्नाटा पसरा।