भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोते का स्कूल / अंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोते ने जंगल में खोला
पशु-पक्षियों का स्कूल।
शिष्यों को जुटते देखा तो
तोता गया गर्व से फूल।

हाथी दादा आये, बोले,
"मैं अब कैसे बैठूँगा?
मेरे नाप की दरी मिली ना
खड़े-खड़े ही पढ़ लूँँगा।"

फिर जिराफ जी आये, बोले
"मेरी तो गर्दन लंबी है।
गुरुजी बैठेंगे फुनगी पर
तो मेरे मुँह की सीध में।"

हिरन आ गया, बोला,"भाई
मेरा कद तो ठीक है। "
दरियाई घोड़ा भी आया
बोला, "दिक्कत मुझे नहीं।"

खरहा आया, बोला, "मेरे
कान तो काफी लंबे हैं।
मैं तो कूद-फाँद करता भी
सब सुन लूँगा, सीखूँगा।"

सारस बोला, "मैं तो यारों!
खड़ा-खड़ा ही पढ़ लूँगा।"
तभी शेर जी आये, बोले,
पहले आसन मुझको दो।"

उन्हें देख सबके दिमाग की
चिड़िया तो गई उड़।
सभी जानवर भाग चले फिर
गुरु जी हो गये फुर्र।