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तोरा बिना कखनूँ नैं चैन लागै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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तोरा बिना कखनूँ नैं चैन लागै छै।
तोरा बिना जीवन बेचैन लागै छै।
जखनी सेॅ रात मेॅ, निगोड़ी नींद भागै छै।
कतौं मनैॅला पर, धूरी नै आबै छै।
पलक बन्द, राखै छीयै मोॅन के दौड़बै छीयै।
द्रोपदी केॅ चीर सन, रैन लागै छै।
तोरा बिना कखनूँ नैं चैन लागै छै।
तोरा बिना जीवन बेचैन लागै छै।
भोला केॅ मनाबै छीयै,
श्रीराम सेॅ मिलाबै छीयै।
रामचरित मानस मेॅ
मोॅन केॅ लगाबै छीयै।
मधुर मधुर भरत केॅ बैन लागै छै
तोरा बिना कखनूँ नैं चैन लागै छै।
तोरा बिना जीवन बेचैन लागै छै।
यही नाँकी आबै छै,
ललका इंजोर।
पीछू-पीछू आबै छै,
बड़का गो भोर।
थकावट सेॅ मट-मट दोनोॅ नैन लागै छै।
तोरा बिना कखनूँ नैं चैन लागै छै।
तोरा बिना जीवन बेचैन लागै छै।

04/08/15 प्रातः पाँच पचास