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तोरा बिना गरमी अपार लागै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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तोरा बिना गरमीं अपार लागै छै।
पंखा हुँकबोॅ आपनैह नैं पार लागै छै।

रोहिण में वर्शा नैं
मृगशिरा में गुमसो।
आद्रा में रिमझिम,
वर्शा रेॅ हुरसो।
सौंसे देह पसीना रेॅ धार लागै छै।
तोरा बिना गरमीं अपार लागै छै।
घटा दौड़ी आबै छै,
घटा दौड़ी भागै छै।
अचरा तोंर सूरज केॅ
देखी लेॅ नुकाबै छै।
की कहियौ दिल केॅ मोचार लागै छै।
तोरा बिना गरमीं अपार लागै छै।
पुनर्वस बरसलोॅ छैं
धरती तरस लोॅ छै।
प्राणी पियासलोॅ छै।
बगीचा हवासलोॅछै।
पानी बिना खेती लाचार लागै छै।
तोरा बिना गरमीं अपार लागै छै।
जीत हार हाथैं छै
भोट भाट होथैं छै
जान माल खौथैं छै।
दुश्मन बनैथैं छै।
सज्जन के जीना कचार लागै छै।
तोरा बिना गरमीं अपार लागै छै।
पंखा हुँकबों आपनैंहनौं पार लागै छै।

14/07/15 अपरहन 3.35