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तोरा बिना जाड़ा अपार लागै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
तोरा बिना जाड़ा अपार लागै छै।
असकल्लोॅ जरलोॅ कपार लागै छै।
तोहें जब तॉय छेल्होॅ
जाड़ा छेलै बढियाँ।
बोरसी सुलगाय केॅ
तापै केॅ घड़ियाँ।
तोरा बिना बीछौ अपार लागै छै।
असकल्लोॅ जरलोॅ कपार लागै छै।
खाली-खाली खटिया
ताकै छै बिटिया।
छटपट परान छै
लोटै छै मटिया।
बोली से नागिन फुफकार मारै छै।
तोरा बिना जाड़ा अपार लागै छै।
बड़की गो रात छै,
दूर कहीं प्रात छै।
थर-थर देह काँपै छै
दौड़ी के छाँपै छै।
निगोड़ी शीतल बयार जागै छै
तोरा बिना जाड़ा अपार लागै छै।
असकल्लोॅ जरलोॅ कपार लागै छै।
23/11/15 सुबह पौने 6 बजे