तोरा बिना जिनगी उधार लागै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'
तोरा बिना जिनगी उधार लागै छै।
तोरा बिना दिन-रात बेकार लगै छै।
थोडेॅ़ थाक पढ़ै छीयै।
थोड़े थाक लिखै छीपयै।
आँखीं में राखी केॅ
तीरे गीत गाबै छीयै।
खाना नहाना लाचार लागै छै।
तोरा बिना जिनगी उधार लागै छै।
फोटो उधारै छीहौं
टुक-टुक निहारै छीहौं।
आँसू बहाबै छीहौं।
लोगों सें छिपाबै छीहौं
बितलोॅ समैइया साकार लागै छै।
तोरा बिना जिनगी उधार लागै छै।
सूतै छीहों, जागै छीहौं
कहला पर खाय छीहौं
देवी देवता मनाय छीहौं।
एतनेंटा जीवन-आधार लागै छै।
तोरा बिना जिनगी उधार लागै छै।
तोरा बिना दिन रात बेकार लागै छै।
काटी-कपची रखना छै।
किताब छपाना छै।
तोहें जे कहनें छौ।
करी केॅ दिखाना छै।
आगाँ-आँगा बाधा हजार लागै छै।
तोरा बिना जिनगी उधार लागै छै।
तोरा बिना दिन रात बकार लागै छै।
28/06/15 सुबह 7.20