Last modified on 13 जून 2017, at 16:35

तोरा बिना जीवन सुनसान लागै छै - 2 / कस्तूरी झा 'कोकिल'

तोरा बिना जीवन सुनसान लागै छै।
तोरा बिना सूना मकान लागै छै।
सावन महीना में वर्शा प्रतिकूल,
वेशी दिन सड़कें पर ऊडै़ छै धूल।
खेतॅ में पानी नैं बिचड़ा रोहानी नैं,
हरसित किसानी नैं, सभ्भेॅ केॅ सुखलॅ परान लागै छै।
तोरा बिना जीवन सुनसान लागै छै।
तोरा बिना सूना मकान लागै छै।
घूमी घामी आबै छीयै
तोरैंह नैं पाबै छीयै।
आँसू छिपाबै छीयै,
पोछतेॅ देखैतॅ गरान लागै छै।
तोरा बिना जीवन सुनसान लागै छै।
तोरा बिना सूना मकान लागै छै।
जखनीं-जखनीं खाय छीहौं।
खाय लेल बोलाय छीहौं
मतुर नैं देखै छीहौं
आय काल तोरोॅ कैन्होॅ धरान लागै छै?
तोरा बिना जीवन सुनसान लागै छै।
तोरा बिना सूना मकान लागै छै।

06/08/15 पूर्वाहन 11.20