तोरा बिना जीवन सुनसान लागै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'
तोरा बिना जीवन सुनसान लागै छै,
गैया बिना खाली बथान लागै छै।
गरमी सताबै छै।
नींदो नैं आबै छै।
हवा नुकैली छै।
रातो बिशैली छै।
बीनी बिना जीवन बेजान लागै छै।
तोरा बिना जीवन सुनसान लागै छै।
गैया बिना खाली बथान लागै छै।
रोहिण बरसलैनैं
मृगशिरा दरपलै नैं
रातों अनहरिया छै।
सूनी डगरिया छै।
तीर धनुश लेनें बिहान लागै छै।
तोरा बिना जीवन सुनसान लागै छै।
गैया बिना खाली बथान लागै छै।
धरती भी डोलैखा जी।
कर्त्ते घोॅर गिरल जी।
ढोर लोग मरलै जी।
पत्थर बरसलै जी।
फसल बिथरलै जी
सबसें बेशी दुखिया किसान लागै छै।
तोरा बिना जीवन सुनसान लागै छै।
गैया बिना खाली बथान लागै छै।
सब कुछ बेढंगा छै।
सुखलीमाय गंगा छै।
चोर, डकैत नंगा छै,
खानपान महँगा छै।
छटपट में वेशी इंसान लागै छै।
तोरा बिना जीवन सुनसान लागै छै।
गैया बिना खाली बथान लागै छै।
17/06/15 सायं सवा पाँच