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तोरा बिना दुनिया अन्हार लागै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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तोरा बिना दुनिया अन्हार लागै छै।
सूना-सूना सौंसे संसार लागै छै।
उठी-उठी बैठे छीयै,
फोटो सें बोलै छीयै।
रात केॅ बिछौना हे।
हाथों सेॅ टटोलै छीयै।
खाली-खाली खटिया कटार लागै छै।
तेरा बिना सूना सौसें संसार लागै छै।
तोरा बिना दुनिया अनहार लागै छै।
तनीं मनीं सूतै छीहौं
फेनूँ तारा गिनै छीहौं
गुदड़ी केॅ सीयै छीहौं
जिनगी केॅ नैया बिना पतवार लागै छै।
तोरा बिना दुनिया अनहार लागै छै।
कुरसी पर घुमाय रीहौं,
साबुन सें नहाय रीहौं।
रुसला पर मनाय रीहौं।
आबेॅ हे! सौंसे दिन बेकार लागै छै।
तोरा बिना दुनिया अनहार लागै छै।
कहाँ गेलियै? सूनै छीयै।
कहीं केॅ बोलैतै केॅ?
बैठली-बैठली गरमी में
पंखा डोलतै केॅ?
काटनाई उमरिया दुसवार लागै छै।
तोरा बिना दुनिया अनहार लागै छै।
तोरा बिना सूना सौंसे संसार लागै छै।

(अंगिका लोक - जुलाई-सितंबर, 2016)
11 फरवरी, 2016 (सवा चार भोर)