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तोरा बिना पल क्षण कटार लागै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
तोरा बिना पलक्षण कटार लागै छै।
विरह रॅ अंगोरा भरभार लागै छै।
रही-रही उठै छीयै,
हिन्नें हुन्नें घूमै छीयै।
गाछ पॉत घूमै छीयै।
फूलतोड़ी सूँधै छीयै।
सब में तोरे खुशबू अपार लागै छै।
तोरा बिना पलक्षण कटार लागै छै।
विरह रॅ अंगोरा भरभार लागै छै।
जाड़ा रॅ सबारी छै।
हवा पछियारी छै।
तोहें स्वर्ग सिधारी छॅ
बड़का सें भरलोॅ संसार लागै छै।
विरह रॅ अंगोरा भरभार लागै छै।
तोरा बिना पलक्षण कटार लागै छै।
असकल्लोॅ घोॅर में
मोॅन की लागै छै।
पौरकोॅ बाला अगहन
आगू दौड़ी आबै छै।
तोरा बिना आबेरी खूँखर लागै छै।
तोरा बिना पलक्षण कटार लागै छै।
विरह रॅ अंगोरा भरभार लागै छै।
11/12/15 साँझ सवा पाँच