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तोरा बिना रात दिन छटपटायल लागै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
तोरा बिना रात दिन छटपटायल लागै छै।
तोरा बिना दुनियाँ मुरझायल लागै छै।
जेंठॅ केॅ तांडव हे सहले न जाय छै।
गाछ विरीछू सबटा कुम्हलायल लागै छै।
लू लपट नाचै छै, गरम हवां जॉचै छै,
गली-गली अंगोरा बिछायल लागे छै।
पशु पंछी हाँफे छै छाहुर पानी खोजै छै।
दुपहिरया में सुरुज उँमतायल लागै छै।
बिछौना आग फूकै छैं, कुत्ता खूब भूकै छै।
आँखीं सें नींन्दों विलायल लागै छै।
बिजली नुकैली छै, बिनियों भुतलैली छै।
तोरोॅ अचरबा बँधायल लागै छै।
चँदा सें पूछै छीयै, तारा सें पूछै छीयै
कन बैहरों आरो ओंगघायल लागै छै।
तोरा बिना रात दिन छटपटायल लागै छै।
तोरा बिना दुनियाँ मुरझायल लागै छै।
24/04/15 दुपहर एक बजे