भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तोरे याद, बसै छै मन में / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
तोरे याद, बसै छै मन में
चाँद-सूर्य जों नील गगन में।
आँखी में तोरे छवि आबै
तोरे हँसी सुनौं कानोॅ सें!
हम्में बिद्ध होलौं जो कभियो
तोरे आँखी के कोनोॅ सें
एक जोत तोरे ही जागौं
हमरोॅ सौसें देह भुवन में।
तोरे नाम रटौं जी हमरोॅ
तोरे छाया ई जी चाहै,
जेकरा दुनिया माया बोलै
ऊ ही माया ई जी चाहै।
जहाँ राह पैवोॅ छै मुश्किल
पहुँची गेलोॅ छी ऊ वन में।
तोरोॅ सुधि जों हमरोॅ म में
दुख की छेकै, कुछ नै जानौं,
नागफनी के माथा परको
फूले केॅ हम्में पहचानौं।
हमरा लगै शिशिर के लहरी
चैत बहै जों आज पवन में।