भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोरै पेॅ खाली मरलै ओकरोॅ पता नै हमरा / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोरै पेॅ खाली मरलै ओकरोॅ पता नै हमरा
गुमनाम जे गुजरलै ओकरोॅ पता नै हमरा
हमरोॅ तेॅ हौलदिल छै देखी ही नद्दिये केॅ
सागर में जे उतरलै ओकरोॅ पता नै हमरा
रामोॅ के हम्में वंशज रघुकुल के रीत जानौं
बोली सें जे मुकरलै ओकरोॅ पता नै हमरा
मरलौ के बाद हम्में दुनियाँ सें नै गुजरबै
दुनियाँ सें जे गुजरलै ओकरोॅ पता नै हमरा
आँखी में अइयो घूमै परदेशी के मुँठानोॅ
जे उम्र भर ठहरलै ओकरोॅ पता नै हमरा
हँसमुख यहाँ छै के के ओकरोॅ पता नै पूछोॅ
कै दिन सें के कुहरलै ओकरोॅ पता नै हमरा
अमरेन्द्र के गजल सें आबेॅ यहाँ पेॅ किस्मत
केकरोॅ सँवरलै जरलै ओकरोॅ पता नै हमरा

-24.11.99