भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तोरोॅ किस्सा हमर कहानी सेॅ / कैलाश झा ‘किंकर’
Kavita Kosh से
तोरोॅ किस्सा हमर कहानी सेॅ।
डरी रहलोॅ छै आग पानी सेॅ।।
जोत पूरब केॅ फैली रहलोॅ छै,
जिन्दगी और जिन्दगानी सेॅ।
मचलोॅ छै खलबली सगर देखो,
सब परेशान राजधानी सेॅ।
हमरोॅ राजा के बात नै पूछो,
रात-दिन तंग अपनोॅ रानी से।
अब तेॅ शोला भी भड़की रहलोॅ छै,
ढेर उम्मीद छै जवानी सेॅ।