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तोरोॅ चरणारविन्द / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

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तोरे कोखी में हे माय!
यै माँटी केॅ मिललोॅ-
चेतन-विश्वास!
ढुकी केॅ तोरे अँचरा तरोॅ में
झेलने छीं-
जिनगी के हवा-बतास!
तोरोॅ ऋण छेॅ साँस-साँस में
जनम-जनम की होबॉे उरोन?
मुहों के बोल, मनोॅ के सोच,
हिरदय के भाव, तोरे आधीन!
औंगरी पकड़ी केॅ चलै लेॅ सिखैल्हेॅ,
अँगुरियाय केॅ देखैल्हेॅ दुनियाँ-जहान,
जराय्यो-टा हमरा लागला सें खोंच,
कल्पै छौं तोरोॅ विह्वल परान!

माँटी के हरियाली, फूलोॅ के गंध,
धरती पर उपकलोॅ जंगल-पहाड़
नद्दी के बालू, झरना के सोत,
भीषणसमुंदर के गर्जन-दहाड़,
अतरंज सें देखने छीं भरलोॅ आनन्द
रचलोॅ विधाता के सुन्दर सरूप,
आरो घुमैने छोॅ कत्तेॅ नी लोक
खिस्सा कहानी में अजगुत-अपरूप!

सोचै छीं तोरा बिन देखैतियै के
सृष्टी के नया-नया भेस?
हम्में के?
कहाँ सें ऐलोॅ छीं देखै लेॅ
धरती के सुन्दर ई देश?
जहाँ से बैठी केॅ
लागै छै देखै में-
दुधमुहों बच्चा रं भोर;
तड़तड़ जुआनी रं
भरलोॅ आवेशोॅ सें
कड़कड़िया रौदो के जोर;
अदबैसू पहरोॅ के
भुकलोॅ उमेरी रं
दमचुरुवोॅ-झमैलोॅ साँझ,
खोता दिश लौटै लं
आतुर छै जेना की
चुरगुन-चिरैया के झाँझ!

मर्त्तलोक कहै छै केन्हें कि
यहाँ पर
थोड़े दिन ऐलोॅ छै लोग
यही लेॅ खपसूरत,
मया छै, ममता छै,
यही लेॅ मोहोॅ के भोग!

सृष्टी के सभ्भे कुछ
सुन्दर-सें-सुन्दरतर
सभ्भै सें सुन्दरतम माय!
तोरोॅ चरणारविन्द;
निच्छावर जेकरा पर
करै छीं
स्वर्ग्हौ केॅ आय!