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तोरोॅ याद / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
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तोरोॅ याद नै आबै छै;
आबेॅ तेॅ तोरोॅ यादो नै आबै छै!
कामोॅ के मेला में असकरुवोॅपन खलै नै छै;
पूर्णिमा राती में चाँन भी जलै नै छै,
सपना के रंगीनी होय गेलै सपना रं,
हेरैलोॅ भावुकता होय गेलै अपना रं;
सुनै छियै जिनगी में सबकुछ कर्त्तव्ये छै
भान भी होय छै
सोचै छियै कभी-कभी कैहने ई होय छै?
प्रेमोॅ के परिभाषा बदलै छै छन्है-छन्है!
देखोॅनी-
जूही के जङलोॅ में भमरा के मेला छै
तेकरा पर बिरही ई जिनगी अकेला छै
अतरज छै-
वीण कहाँ बाजै छै?
राग कहाँ लहरै छै?
की कहभेॅ तोंहें पर
सच्चे-सच बोलै छीं
गीतो नै गाबै छीं प्रीत के!