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तोरोॅ रूप; सुधा ज्यों बरसेॅ / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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तोरोॅ रूप; सुधा ज्यों बरसेॅ ।

मरुवैलोॅ जतना जे जग में
वै में प्राण अचोके आवै,
दुबड़ी रं जरलोॅ रोआं पर
ओसोॅ सें क्षण-क्षण नहलावै;
मन में गूंजै भौर प्रेम के
खिलै हृदय के कमल हठासी
टटका-टटका भाव लगै सब
एक जरा नै कुछुवो वासी ।
हेनोॅ भावोॅ-अनुभव लेली
हमरो जीवन युग-युग तरसेॅ ।

तोरोॅ रूप रहौं ई जग में
जेना धरती ऊपर नभ छै,
सच पूछोॅ तेॅ जे भी सुन्दर
स्वाती पर ही निर्भर सब छै;
नद्दी नै तेॅ कहाँ किनारा
बिना डार के फूल कहाँ छै
तोरोॅ छवि के बरसातोॅ सें
आँख कमल रं यहाँ-वहाँ छै ।
ऊ कभियो की मुक्ति चाहै
जों छवि तोरोॅ दरसेॅ-परसेॅ ।