भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तोरोॅ है प्रेम हमर प्राण छिकै / कैलाश झा ‘किंकर’
Kavita Kosh से
तोरोॅ है प्रेम हमर प्राण छिकै ।
हमरोॅ जीवन केॅ ई बिहान छिकै ।।
तोरोॅ बोली मेॅ जे मिठास घुलल,
प्रेम गीतोॅ के मधुर तान छिकै ।
ई अदा केॅ नै छै जवाब कोनो,
दिल केॅ हर रोग केॅ निदान छिकै ।।
तोरोॅ केशो ग़ज़ल लगै एहन,
कोनो शायर केॅ आन-बान छिकै ।।
प्रेम दीपोॅ सेॅ सजल जे आँचरा,
कोनो ‘किंकर‘ के ऊ गुमान छिकै ।।