भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोर कौन ठेकाना / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोरे कौन ठेकाना हो
कल रहबा नै रहबा
तोहर आल औलाद
अगर पुछतो
तब की कहबा
इहे ने कि
सोचऽ हा
कल जाना हे,
दू दिन के मेला हे,
अगर आजदी भुलैबा
तब छोड़ के की जैबा?
घर के गेनरा घरे में रह जैतो,
तोहर बाल-बच्चा ई सह जैतो
काहे कि
ओकरा की पता रहतो,
घर जब उजड़ जैतो
नै जानी कता रहतो
उहे दिन ले
तोहर जवानी
जगाना जरूरी हो गेलो हे
तोहन मन में
सुलगल चिनगारी हो
तब आग लगाना
जरूरी हो गेलो हे।