भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोहफ़े में दर्द हम ने सितमगर से पाये हैं / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोहफ़े में हम ने दर्द सिगमगर से पाये हैं
हम राहे मुहब्बत में बड़ी चोट खाये हैं

आती ही नहीं नींद कोशिशों के बावजूद
ख्वाबों में भी तो वो बड़ी मुश्किल से आये हैं

देखे जो शर्मसार चश्मे नम तो पूछ ले
आंखों में भला इस तरह क्यूँ अश्क़ आये हैं

हर मोड़ पे दुश्वारियाँ हर ओर मुश्किलें
मण्डरा रहे सिरों पे मुसीबत के साये हैं

मुँह फेरे हुए उसको ज़माना गुज़र गया
हम हैं कि दिया याद का अब तक जलाये हैं

उन को न कोई बेवफ़ा कह दे इसीलिये
आंखों में अश्क़ रोक के हम मुस्कुराये हैं

ले जुगनुओं को ढूढ़ने निकले हैं आफ़ताब
अब्रे फ़िराक आसमाँ में क्यों छाये हैं