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तोहमत / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’

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जो गिर गये उनको उठाना सीखिये
फ़र्ज अपने आप निभाना सीखिये।
अबला जो है घिर गई शैतानों से
आबरू उसकी बचाना सीखिये।
तोहमत दूजे पर लगाना छोड़ दो
रास्तों के काँटा हटाना सीखिये।
गमों में घबरा जाते अगर कोई
दिलों का ये दर्द घटाना सीखिये।
जो तड़प रहे बेइंतहा मुहब्बत में
उन रिश्तों को अपनाना सीखिये।
बढ़ा लिये हो क्यों दिल के फ़ासले
दर्द इन दिलों का मिटाना सीखिये।
मंजिल दूर है तो तुम क्यों डर गये
हौसलों से उसको पाना सीखिये।