भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोहरा के केहू किसान ना कहे / सुभाष चंद "रसिया"

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोहरा के केहू किसान ना कहे।
आपन कवनो आधार ना रहे।
पहचान मिलल अभी बाकी बा।
मिलल ना अधिकार बहना।
तोहरा के किसानी मे॥

सुबह से लेकर शाम तक बहना।
काम तोहार बा आपन गहना।
सम्मान के रोशनी बाकी बा।
मिलल ना अधिकार बहना।
तोहरा के किसानी में॥


खेत खलिहान को स्वर्ग बनाती।
भगीदारी केअधिक निभाती।
अधिकार के जोतिया बाकी बा।
मिलल ना अधिकार बहना।
तोहरा के किसानी में॥

आधी आबादी फिर ना आजादी।
समरसता कि तुम हो आदी।
अइसन काहे बर्बादी बा।
मिलल ना अधिकार बहना।
तोहरा के किसानी में॥

भोजन बनावे सबके खिलावे।
अपने ही उपवास में सोवे।
कल के चिन्ता जे करत बा।
मिलल ना अधिकार बहना।
तोहरा के किसानी में॥

शिक्षित बन संगठन बनाव।
आपन तू अब मान बढ़ाव।
अपनी खेत खलिहानी मे।
मिलल ना अधिकार बहना।
तोहरा के किसानी में॥