भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोहरे बा आसरा अब, तोहरे बा अब सहारा / मनोज भावुक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

KKGlobal}}


तोहरे बा आसरा अब, तोहरे बा अब सहारा
कुछ रास्ता देखावऽ, कुछ तऽ करऽ इशारा

तोहरा के छोड़ के हम, केकरा के अब पुकारी
कुछ कर देखावऽ अइसन, हमरो मिले किनारा

तोहरा त सब पता बा, हमरा कहे के का बा
ओकरे से तू मिला दऽ, हमरा जे लागे प्यारा

पसरो ऊ हाथ कइसे, हरदम जे बा लुटवले
अतना जरूर दीहऽ, होखत रहे गुजारा

दुख के घड़ी में आपन, केहू कहाँ बा साथे
सब लोग तऽ भरल बा, रिश्तन के बा पसारा

उतरत-चढ़त रहेला मन आदमी के अइसे
जइसे चढ़े आ उतरे कवनो नली में पारा

एक दिन जरूर चमकी 'भावुक' गगन में, बाकिर
गरहन अभी बा लागल, गर्दिश में बा सितारा