भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोहर ठोर / कालीकान्त झा ‘बूच’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कि जहिना कुरकुर पानक ठोर
कि तहिना सुन्नरि तोहर ठोर
लगौलह बातक पाथर चून
सजौलह कऽथ कपोलक खून
कि रहलह एक्के बातक चूक
कतऽ छह प्रेमक पुंगी टूक
कि जहिना लाली पसरल भोर
कि तहिना सुन्नरि तोहर ठोर
देखि कऽ लहरल हमर करेज
त्यागि अयलहुँ उदयाचल गेह
अहाँ बिनु व्याकुल वाटक माँझ
सुमुखि भऽ रहल जीवनक साझ
कि जहिना वक्र सुधाकर गोर
कि जहिना सुन्नरि तोहर ठोर
पिपासित आयब अहँक दुआरि
प्रेम पीयूष पीयब झटढ़ारि
बधिक जँ बनत अहँक बर बाहु
तऽ हमहू बनव विखंडित राहु
कि जहिना सुधा स्वर्ग मे थोर
कि तहिना सुन्नरि तोहर ठोर
सीखि विश्वकर्मा सँ विज्ञान
बनायब सकरी मिल महान
भरब माधुर्यक कोषागार
सेहंतित भऽ जायत संसार
जेना कुसियारक पाकल पोर
कि तहिना सुन्नरि तोहर ठोर
बनव हम पुर्नजन्म मे धान,
धान सँ भऽ जायब चिष्टान्न
पड़ब पुनि अहँक प्रतीक्षापात
अछिंजल सँ सद्यः स्नात
जेना छाल्ही साजल नव खोर
कि तहिना सुन्दरि तोहर ठोर
भऽ रहल वर्ण-वर्ण निःशेष
शब्द सँ प्रगटल नहि उद्य़ेश्य
मने मे रहल मनक सब बात
अनल मे पड़ल नवल जल गात
जेना आगू अलभ्य चित चोर
कि तहिना सुन्नरि तोहर ठोर