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तो कैसा होता! / शम्भुनाथ तिवारी
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गर शर्बत का झरना होता तो कैसा होता!
घड़े उसी में भरना होता तो कैसा होता!
एक सड़क बालूशाही की होती घर के पास,
उस पर मुझे टहलना होता तो कैसा होता!
उसी सड़क के पास महल जो बरफी का होता,
और उसी में रहना होता तो कैसा होता!
गेट इमिरती का सुंदर सा लगा हुआ होता,
लड्डू जी का धरना होता तो कैसा होता!
बूँदी की दीवारें, छत रसगुल्ले की होती,
और गजक का पलना होता तो कैसा होता!
कमरे सभी गरी के, बिस्तर चमचम का होता,
शयन उसी पर करना होता तो कैसा होता!
कलाकंद की टेबल, कुर्सी घेवर की होती,
बैठ उसी पर पढ़ना होता तो कैसा होता!
एक बड़ा तालाब लबालब रबड़ी का होता,
उसमें रोज तैरना होता तो कैसा होता!