तो मैं बच्चा बन जाता हूँ / दयानन्द पाण्डेय
जब कोई बेशऊर औरत बदसुलूकी करती है
बेवज़ह अपमानित करती मिलती है
बदमिजाजी का अंधेरा फैलाने लगती है
तो इस सब से बचने के लिए, इस से उबरने के लिए
मैं पुरुष नहीं रह जाता, बच्चा बन जाता हूं
इस लिए कि बच्चे बुरी बात बहुत जल्दी भूल जाते हैं
बच्चे हर औरत में अपनी मां पाते हैं
किसी औरत को इज़्ज़त देने का
यह सब से महफूज़ तरीक़ा है
कि हम बच्चे बन जाएं
औरत सलामत है तो बच्चे सलामत हैं
औरत और बच्चे मिल कर एक खूबसूरत दुनिया बनाते हैं
किसी फूल के बागीचे सी महकती और चहकती दुनिया
बच्चा बन कर औरत से जो मांगो दे देती है
ममत्व के पाग में सान कर अपनी जान भी
बात-बेबात खून बहाने वाले क्या जानें
कि अपने दूध के रूप में अपना खून ही तो पिलाती है औरत
और मां बन जाती है
सिर्फ़ बच्चा पैदा करने से औरत मां नहीं बनती
मुकम्मल मां बनती है अपने दूध का क़र्ज़ दे कर
यह क़र्ज़ अभी तक दुनिया में कोई भी उतार नहीं पाया
इसी लिए
जब कोई बेशऊर औरत बदसुलूकी करती है
बेवज़ह अपमानित करती मिलती है
बदमिजाजी का अंधेरा फैलाने लगती है
तो मैं बच्चा बन जाता हूं
[8 मार्च, 2015]