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तो संवेदना के ये स्वर किसलिए हैं? / रुचि चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
नहीं सार समझा है जब वेदना का
तो संवेदना के ये स्वर किसलिए हैं।
हलाहल ही जब पी लिया आँसूओं का
तो आँखें ये भावों से तर किसलिए हैं॥
लिखा पूर्व में उद्धरण इस कथा का,
हमें पात्र इसका बनाया ही क्यों था।
स्वयं खंडहर अपने घर को बनाया,
रंगोली से आँगन सजाया ही क्यों था॥
कथा दर्द की लिख रहे हो अगर तो
कलम ये तुम्हारी प्रखर किसलिए है॥
हलाहल ही जब पी लिया आँसूओं का
तो आँखें ये भावों से तर किसलिए हैं॥
हमें हो सिखाते इधर जाईये मत,
स्वयं क्यों उधर जा रहे हो बताओ।
हमें छंद गाने से रोका मगर अब,
स्वयं गीत क्यों गा रहे हो बताओ।
सुनाते रहे जाने क्या-क्या सभी को,
मगर मौन धारे अधर किसलिए हैं॥
हलाहल ही जब पी लिया आँसूओं का
तो आँखें ये भावों से तर किसलिए हैं॥