तो सुन लीजिए अब / प्रमोद कौंसवाल
तो सुन लीजिए अब
आदेश पारित है
कहा गया है बेघरों के बारे में
उनकी सही तस्वीर पेश की जाए
जैसे कि दुनिया में औरों की तस्वीरों को देखकर
आपके आंसू नहीं टपकते
इसलिए
कहा गया है अपने बचाव के लिए आइए
आज नहीं तो कल
यही दस बीस साल ही सही
खर्चा वहन कर सकते हो तुम ही
तुमको चाहिए न न्याय
इसलिए
आप लिखें
पीड़ित हूं मैं
अपनी बात रखने का एक भी मौक़ा
न मिला मुझे
आरोप है पर सच है झील के किनारे
सुस्ताता रहा मैं
मैं शाम को अपना घर डूबता हुआ देख रहा था
सुबह उठा तो कुछ खेत भी
जलमग्न हो गए
मेरे सरकार मेरा रवैया ग़ैर ज़िम्मेदाराना रहा
फिर चुनाव में शराब पिलाते रहे वो
रात दिन
दिन रात प्रचार में
मेरी कमर टूट-सी गई
जब सीधी हुई तो सुना
अब मैं जिस ज़मीन खड़ा हूं वो
उत्तराखंड है
लो इसमें भी मैं ही दोषी ठहरा जैसा
और वह इसलिए कि मैं मुज़फ़्फ़रनगर से होता हुआ
दिल्ली गया था इस लड़ाई के लिए
लिखना कि इस तरह से मुझसे
टिहरी भुला देने की कोशिश हुई
मेरी ही है ग़लती हुई