भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

त्याग दें काम क्रोध / बाबा बैद्यनाथ झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब चाह रहे सौन्दर्य बोध
तो प्रथम त्याग दें काम क्रोध
उपवन में जाकर घूम जरा
फूलों कलियों को चूम जरा
जब हृदय-पुष्प खिल जाएगा
सौन्दर्य वहाँ मिल जाएगा
 
जब भूखे बच्चे रोते हों
माँ बाप कलपते सोते हों
ले द्रवित हृदय देखो जाकर
दुख में कुछ देकर सहलाकर
हो तृप्त दीन मुस्काएगा
सौन्दर्य वहाँ मिल जाएगा
 
दिग्भ्रान्त भटकता हो मानव
सब कार्य करे वह ज्यों दानव
उसको जब राह दिखा पाओ
जीवन के मंत्र सिखा पाओ
वह मानव बन सुख पाएगा
सौन्दर्य वहाँ मिल जाएगा
 
जब विरह विदग्धा रोती है
प्रियतम की आस सँजोती है
जब आ न सके निष्ठुर साजन
नैनों से बरसे नित सावन
तत्क्षण साजन आ जाएगा
सौन्दर्य वहाँ मिल जाएगा
 
जब मंच मिले तो मुस्काओ
फिर गीत ग़ज़ल जमकर गाओ
दुख-दर्द भरे हों गानों में
तब गाओ ऊँची तानों में
हर श्रोता हर्ष मनाएगा
सौन्दर्य वहाँ मिल जाएगा