भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

त्यौहार मनाने घर जाता आदमी-1 / पवन करण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

त्यौहार मनाने घर जाता आदमी
कुछ पहले से
जाने की तैयारी करने लगता है
उसकी उदासी टूटने लगती है

खिलने लगता है उसका चेहरा
उसकी व्यग्रता देखकर लगता है
इतने दिन त्यौहार में क्यों बचे हैं
लगता है त्यौहार के बाद

उसका मन काम में लगेगा,
महसूस होता है
त्यौहार का मज़ा घर पर ही है
घर के बिना कैसा त्यौहार

वह कहता है पिता बेसब्री से
उसकी प्रतीक्षा कर रहे होंगे
वह आजकल में, आने वाला होगा,
सोच रहे होंगे

माँ जतन से गुझियाँ, सकरपारे
बना रही होगी, मगर उनमें स्वाद
तो जब वह घर पहुँचेगा, तब आ पाएगा