भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

त्यौहार मनाने घर जाता आदमी-2 / पवन करण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

त्यौहार मनाने घर जाता आदमी
अपने शहर में ट्रेन से उतरता हे
कुछ देर वहाँ ठहरकर पहचान टटोलता है,
करता है चेहरे पढ़ने की कोशिश

उसे वहाँ अपना कोई नहीं दिखता
मगर शहर में सभी उसे अपने लगते हैं
घर की तरफ़, भागते टेम्पो से
देखता चलता है शहर त्यौहार पर

कैसा तैयार हो रहा है
उसे हर आदमी त्यौहार की
तैयारी में जुटा जान पड़ता हे
उसे लगता है, त्यौहार को लेकर

शहर के लोगों में ख़ूब उत्साह है
आदमी चाहता है टेम्पो में
कोई पूछे उससे, क्यों भाई
क्या त्यौहार मनाने घर आए हो

औैर वो तपाक से कहे
हाँ, हाँ त्यौहार पर घर आया हूँ