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त्रासदी कितनी / राम सेंगर
Kavita Kosh से
तने हुए मुक्के पर
टाँग ले सवालों को
धैर्य-धर्म की डफली
और नहीं पीट
गला फाड़ कर ।
ड्यौढ़ी पर खड़ा-खड़ा
गुलुर-गुलुर क्या करता
चीरकर झपट्टों को
दे लातें
ज़ोर से किवाड़ पर ।
पूँजी का दिया हुआ
घाव नहीं भरने का
सुविधा के दौने को
छुला नहीं माथे से
रबड़ी में मिली हुई कीच ।
ओफ़्फ़ !
त्रासदी कितनी नीच !!