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त्राहि त्राहि बृषाभानु-नंदिनी तोकों मेरो लाज / सुन्दरकुवँरि बाई

त्राहि त्राहि बृषाभानु-नंदिनी तोकों मेरो लाज।
मन-मलाह के परी भरोसे बूड़त जन्म-जहाज॥
उदधि अथाह थाह नहिं पइयत प्रबल पवन की सोप।
काम, क्रोध, मद, लोभ भयानक लहरन को अति कोप॥
असन पसारि रहे सुख तामहिं कोटि आह से जेते।
बीच धार तहँ नाव पुरानी तामहिं धोखे केते॥
जो लगि सुर मग करै पार यहि सो केवट मति नीच।
वही बात अति ही बौरानी चहत डुबोवन बीच॥
याको कछु उपचार न लागत हिया हीनत है मेरो।
सुन्दरकंवरि बाँह, गहि स्वामिनि एक भरोसो तेरो॥