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त्रिपटी / अशोक वाजपेयी
Kavita Kosh से
जैसे वाद्यवृन्द में
यथासमय बजने से रह गया
एक स्वर है, जैसे यातना-शिविर ले जानेवाली ट्रेन से
छूट गया एक यहूदी बच्चा,
जैसे उसके पैर से
तत्कार के आवेग में
छिटककर दूर फिंक गया एक घुँघरू -
- जैसे ये तीनों
यहाँ इस अन्तराल में
अपनी एक त्रिपटी बनाए खड़े हैं-।