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थकन को जाम करें आरज़ू को बादा करें / राग़िब अख़्तर
Kavita Kosh से
थकन को जाम करें आरज़ू को बादा करें
सुकून-ए-दिल के लिए दर्द का इआदा करें
उभरती डूबती साँसों पे मुंकशिफ़ हो जाएँ
सुलगती गर्म निगाहों को फिर लबादा करें
बिछाएँ दश्त-नवर्दी जुनूँ की राहों में
फ़िराक़ शहर-ए-रिफ़ाक़त में ईस्तादा करें
तुम्हारे शहर के आदाब भी अजीब से हैं
कि दर्द कम हो मगर आह कुछ ज़ियादा करें
ये सर्द रात निगल लेगी साअतों का वजूद
जलाएँ शाख़-ए-बदन और इस्तिफ़ादा करें