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थकान के किसी और रंग में / मनोज कुमार झा
Kavita Kosh से
अभी आप नाचकर निकले हैं
पवन तेज़ अभी देह की, रूधिर तेज़
प्रकाश का थक्का माथे में घूम रहा
हम बातें करेंगे
किसी और दिन, किसी और सुबह, किसी शाम, किसी रात
जब नष्ट हो रहे प्रकाश बाँधेंगे आपको अलग रंग में
जब थकान की झाँइयाँ हम एक ही इन्द्रधनुष से चुनेंगे ।