थकान में जागती हुई भूख / हेमन्त कुकरेती
खेल के मैदान में सोया हुआ कुत्ता गीली घास पर
सुन रहा है उन बेचैन पैरों की धमक
जो कुछ देर पहले तक जल रहे थे
बरसकर शान्त पड़े आसमान के नीचे नीम पर कूदती
गिलहरी उसके लिए उत्तेजना नहीं है
यूकलिप्टस की पत्तियों से ज्यादा हरे हैं तोतों के दुख
उनकी आहट से कुत्ते के कान खड़े होते हैं
मिटती हुई थकान में जागती हुई भूख
चुनौती की तरह खड़ी हो रही है
उसी से टूट रही है नींद
मैदान में कहीं रुके हुए पानी में उड़ती हुई चिड़िया के पंख
हिल रहे हैं और गूँज रही हैं ध्वनियाँ
कुत्ता उन्हें सूँघकर फिलहाल पानी पर गुस्सा करना स्थगित
कर देता है
जहाँ उसकी पूँछ बाक़ी शरीर से जुड़ी है वहाँ अब भी सिहरन है
उसके दिमाग़ की तरह यह हिस्सा नींद में जागा हुआ है
अचानक बारिश से चकित पृथ्वी के हर कोने में
दौड़ रही हैं उसकी आँखें
किसी अँधेरे में कुछ लाल पंख गिरे हैं
छटपटाने की आवाज़ से वह चौंककर देखता है
कौवे पानी में सहमे हुए, आसमान से गिरते
रुके हुए पानी में अपनी परछाईं पर झपट रहे हैं
उसकी गुर्राहट गले में मचलकर पेट में समा रही है
जहाँ तक सोचा जा सकता है वह जगह उसकी है
जख़्मों पर बैठती मक्खियों पर वह दाँत किटकिटाता है
अपने पैरों को चाटकर उन पर टिका देता है अपना सिर
उसके पंजे कोमल हैं
चाटने के लिए उन पर खू़न नहीं
देर रात की ओस है...