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थका हुआ क्रांतिकारी / उज्ज्वल भट्टाचार्य
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जाड़े का मौसम है
ठंड के मारे बुरा हाल है
थका हुआ क्रांतिकारी
कम्बल लपेटकर
बिस्तर पर बैठा है
उसका सिद्धांत है --
दौड़-धूप करने से
पसीना आता है
पसीना ठंडा हो जाय
तो कंपकंपी होने लगती है
वो कहता है :
सिद्धांत को समझे बिना
सड़क पर मत उतरो
ठंड लग जाएगी
मुझे बिस्तर में रहने दो
कम्बल के नीचे
मैं सिद्धांत तैयार करता हूं
मुझे छेड़ो मत
छेड़ो मत