भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थक कर बैठते नहीं रंग / देव प्रकाश चौधरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थक कर बैठते नहीं रंग
वे हमारे जीवन में करते हैं तांक-झांक
वे पूछते हैं कुछ सवाल
यादों का बोझ लिए हम कहाँ तक जाएंगे?
सिमटती और ओझल होती प्रतीक्षा
किसी खूंटी पर टंगे सपने
दीवार पर सीलन के धब्बे
बचपन के गुल्लक में खनकते सिक्के
कुछ दबी हुई चीखें, आलाप की तरह
दिल में गुनगुनाता प्यार
देवताओं के दरवाजे पर प्रार्थना के कुछ स्वर
पत्थर के पड़ोस में
बरगद का एक पत्ता
इन सबको एकत्र कर रंग हमारे लिए रचते हैं एक ओर संसार,
जहाँ सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी
हमेशा बचा रह जाता है
स्वीकार प्यार।
इसलिए कभी थक कर नहीं बैठते रंग।