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थक गया हूँ मैं आबला पा हूँ / रविकांत अनमोल
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थक गया हूँ मैं आबला पा हूँ
और उस पर युगों से तन्हा हूँ
जागता हूँ तो याद में तुम हो
ख़्वाब में तुम हो जब भी सोता हूँ
जी रहा हूँ कि जीना पड़ता है
हँसना पड़ता है हँस भी लेता हूँ
एक तुम हो फ़रेब देते हो
एक मैं हूँ फ़रेब खाता हूँ
ये भी ऐज़ाज़ कम नहीं साहिब
मैं किसी की नज़र में रहता हूँ