भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थक गया है दिल यहाँ रह-रह के बरबस / सतीश बेदाग़
Kavita Kosh से
थक गया है दिल यहाँ रह-रह के बरबस
ढूँढने निकलेगा दुनिया फिर कोलंबस
एक लेडी-साइकल और एक बाइक
एक है चादर बिछी और एक थर्मस
इस क़दर जब मुस्कुरा के देखती हो
याद आता है मुझे कॉलेज का कैम्पस
हैं अलग टी.वी., अलग कमरों में दिल हैं
एक टी.वी. था गली में, हम थे रस-मस
ये विचार और वो विचार ऊपर से नीचे
रात-दिन जारी ज़हन में एक सर्कस